भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जंगल उग आए / धनंजय सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भाव-विहग उड़ इधर-उधर
दुख दाने चुग आए
मन पर घनी वनस्पतियों के
जंगल उग आए

चीते-जैसे घात लगाए
कई कुटिलताएँ
मुग्ध हिरन की आँखों का
संवेदन समझाएँ

किस-किस बियाबान के कर्ज़े
जीवन भुगताए

हरे ताल की छाती पर
आ बैठी जलकुम्भी
और किनारे पर कँटिया ले
बैठे हो तुम भी

एक-एक पीड़ा के बाँटे
कितने युग आए