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जंगल जागा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

68
जंगल जागा
मेपल -पतझर
या लगी कहीं आग
भड़के शोले
दहक उठे पात
क्या खूब है यौवन !
69
ओ मनमीत!
गले से लग जाओ
अब दूर न जाओ,
कहाँ खो गए
तुम हो गए मौन
अब मेरा है कौन !
70
जले हैं पंख
टूट गए हैं डैने
ऊँचे शैल शिखर,
बड़ी चुनौती
आँधी चली हिमानी
जाना है कोसों दूर ।
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