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जंगल में रात / महेश उपाध्याय

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चाँदी की चोंच
थके पंखों के बीच दिए
पड़कुलिया झील सो गई
गल में रात हो गई

शंखमुखी देह मोड़कर
ठिगनी-सी छाँह के तले
आवाज़ें बाँधते हुए
चोर पाँव धुँधलके चले

डूबी-अनडूबी हँसुली
कितनी स्याही बिलो गई
जंगल में रात हो गई ।