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जगण रो गीत /सत्यप्रकाश जोशी

मींच आंखड़ियां, कर अंधारो
मत अंधारो सहो
जागता रहो
ताकता रहो
जागता रहो ।
सपनां रो राजा चंदरमा, इमरत पी मर जसी
सोनां री जागीरां खोकर सै तारा घर जासी
छिण में उठसी रैणादे रा काळा पड़दा
चन्नाणां री किरणां सूं ठगणी छिंयां डर जासी
नवी जोत में राख भरोसो
नवी कहाणियां कहो
जागता रहो

सीटी रो सरणाटो बाजै, मील मजूरी चालां
खेतां में पंछीड़ा बोलै, हळ रा ठाठ संभाळां ।
हाट हटड़ीयां खोलां, इसो जमानो पाळा ।
ऊगै है सोना रो सूरज
मत आळस में बहो
जागता रहो ।