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जगत में पाप जो पर्वत समान करते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

जगत में पाप जो पर्वत समान करते हैं।
वो मंदिरों में सदा गुप्तदान करते हैं।

लहू व अश्क़, पसीने को धान करते हैं।
हमारे वासिते क्या क्या किसान करते हैं।

नहीं मिलेगी मुहब्बत कभी उन्हें सच्ची,
वो अपने हुस्न पे बेहद गुमान करते हैं।

गरीब अमीर को देखे तो देवता समझे,
यही है काम जो पुष्पक विमान करते हैं।

जो मंदिरों में दिया काम आ सका किसके?
नमन उन्हें जो सदा रक्तदान करते हैं।