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"जगह थी दिल को तिरे, दिल में इक ज़माना था / सौदा" के अवतरणों में अंतर

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मिरे भी शीशे को इस संग में ठिकाना था
 
मिरे भी शीशे को इस संग में ठिकाना था
  
ख़रीद इश्क़ ने जिस रोज़ की मताए-हुस्न1
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ख़रीद इश्क़ ने जिस रोज़ की मताए-हुस्न<ref> सौन्दर्य रूपी वस्तु</ref>
जो नक़्दे-जाँ2 पड़ी क़ीमत तो दिल बयाना3 था
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जो नक़्दे-जाँ<ref>जान रूपी पूँजी</ref> पड़ी क़ीमत तो दिल बयाना<ref>पेशगी</ref> था
  
 
जो ज़िक्र बाद मिरे होगा जाँनिसारों का
 
जो ज़िक्र बाद मिरे होगा जाँनिसारों का
 
करोगे याद मुझी को कि वो इक फ़लाना था
 
करोगे याद मुझी को कि वो इक फ़लाना था
  
जो हद्दे-रीश4 की रखने से मैं सुख़न5 पूछा
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जो हद्दे-रीश<ref>दाढ़ी की हद</ref> की रखने से मैं सुख़न<ref>कारण</ref> पूछा
हरेक बात में ज़ाहिद की शाख़साना6 था
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हरेक बात में ज़ाहिद की शाख़साना<ref> अगर मगर</ref> था
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ब-जुर्मे-नीम-निगह<ref>अधखुली आँखों का अपराध करके</ref> था न क़त्ले-'सौदा' फ़र्ज़
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अज़ल<ref>मौत</ref> के वास्ते उसके ये इक बहाना था
  
ब-जुर्मे-नीम-निगह7 था न क़त्ले-'सौदा' फ़र्ज़
 
अजल8 के वास्ते उसके ये इक बहाना था
 
  
'''शब्दार्थ
 
1. सौन्दर्य रूपी वस्तु, 2. जान रूपी पूँजी, 3. पेशगी, 4. दाढ़ी की हद, 5. कारण, 6. अगर मगर, 7. अधखुली आँखों का अपराध करके, 8. मौत
 
 
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21:43, 17 मई 2009 के समय का अवतरण

जगह थी दिल को तेरे, दिल में इक ज़माना था
मिरे भी शीशे को इस संग में ठिकाना था

ख़रीद इश्क़ ने जिस रोज़ की मताए-हुस्न<ref> सौन्दर्य रूपी वस्तु</ref>
जो नक़्दे-जाँ<ref>जान रूपी पूँजी</ref> पड़ी क़ीमत तो दिल बयाना<ref>पेशगी</ref> था

जो ज़िक्र बाद मिरे होगा जाँनिसारों का
करोगे याद मुझी को कि वो इक फ़लाना था

जो हद्दे-रीश<ref>दाढ़ी की हद</ref> की रखने से मैं सुख़न<ref>कारण</ref> पूछा
हरेक बात में ज़ाहिद की शाख़साना<ref> अगर मगर</ref> था

ब-जुर्मे-नीम-निगह<ref>अधखुली आँखों का अपराध करके</ref> था न क़त्ले-'सौदा' फ़र्ज़
अज़ल<ref>मौत</ref> के वास्ते उसके ये इक बहाना था

शब्दार्थ
<references/>