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|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
|संग्रह=युगांत / सुमित्रानंदन पंत
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::जग -जीवन में जो चिर महान,::सौंदर्य -पूर्ण औ सत्य -प्राण,::मैं उसका प्रेमी बनूँ , नाथ!जिससे ::जिसमें मानव -हित हो समान!
जिससे जीवन में मिले शक्ति,
छूटे भय-शंसय, संशय, अंध-भक्ति,;
मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ!
पाकर, प्रभु! तुमसे अमर दान
करने मानव का परित्राण,
ला सकूँ विश्व में एक बार
फिर से नव जीवन का विहान।विहान!
</poem>
रचनाकाल: मई १९३५