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"जग-जीवन में जो चिर महान / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
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जग जीवन में जो चिर महान, | जग जीवन में जो चिर महान, | ||
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सौंदर्य पूर्ण औ सत्य प्राण, | सौंदर्य पूर्ण औ सत्य प्राण, | ||
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मैं उसका प्रेमी बनूँ नाथ! | मैं उसका प्रेमी बनूँ नाथ! | ||
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जिससे मानव हित हो समान! | जिससे मानव हित हो समान! | ||
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जिससे जीवन में मिले शक्ति, | जिससे जीवन में मिले शक्ति, | ||
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छूटे भय-शंसय, अंध-भक्ति, | छूटे भय-शंसय, अंध-भक्ति, | ||
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मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ! | मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ! | ||
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मिज जावें जिसमें अखिल व्यक्ति! | मिज जावें जिसमें अखिल व्यक्ति! | ||
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दिशि-दिशि में प्रेम-प्रभा-प्रसार, | दिशि-दिशि में प्रेम-प्रभा-प्रसार, | ||
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हर भेदभाव का अंधकार, | हर भेदभाव का अंधकार, | ||
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मैं खोल सकूँ चिर मुँदे, नाथ! | मैं खोल सकूँ चिर मुँदे, नाथ! | ||
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मानव के उर के स्वर्ग-द्वार! | मानव के उर के स्वर्ग-द्वार! | ||
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पाकर, प्रभु! तुमसे अमर दान | पाकर, प्रभु! तुमसे अमर दान | ||
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करने मानव का परित्राण, | करने मानव का परित्राण, | ||
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ला सकूँ विश्व में एक बार | ला सकूँ विश्व में एक बार | ||
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फिर से नव जीवन का विहान। | फिर से नव जीवन का विहान। | ||
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00:52, 13 अक्टूबर 2009 का अवतरण
जग जीवन में जो चिर महान,
सौंदर्य पूर्ण औ सत्य प्राण,
मैं उसका प्रेमी बनूँ नाथ!
जिससे मानव हित हो समान!
जिससे जीवन में मिले शक्ति,
छूटे भय-शंसय, अंध-भक्ति,
मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ!
मिज जावें जिसमें अखिल व्यक्ति!
दिशि-दिशि में प्रेम-प्रभा-प्रसार,
हर भेदभाव का अंधकार,
मैं खोल सकूँ चिर मुँदे, नाथ!
मानव के उर के स्वर्ग-द्वार!
पाकर, प्रभु! तुमसे अमर दान
करने मानव का परित्राण,
ला सकूँ विश्व में एक बार
फिर से नव जीवन का विहान।