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::जिसमें मानव-हित हो समान!
जिससे जीवन में मिले शक्ति,
मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ!
::दिशि-दिशि में प्रेम-प्रभा प्रसार,
::हर भेद-भाव का अंधकार,
ला सकूँ विश्व में एक बार
फिर से नव जीवन का विहान!
</poem>
रचनाकाल: मई १९३५