भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जग-जीवन में जो चिर महान / सुमित्रानंदन पंत

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:52, 13 अक्टूबर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जग जीवन में जो चिर महान,
सौंदर्य पूर्ण औ सत्‍य प्राण,
मैं उसका प्रेमी बनूँ नाथ!
जिससे मानव हित हो समान!

जिससे जीवन में मिले शक्ति,
छूटे भय-शंसय, अंध-भक्ति,
मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ!
मिज जावें जिसमें अखिल व्‍यक्ति!

दिशि-दिशि में प्रेम-प्रभा-प्रसार,
हर भेदभाव का अंधकार,
मैं खोल सकूँ चिर मुँदे, नाथ!
मानव के उर के स्‍वर्ग-द्वार!

पाकर, प्रभु! तुमसे अमर दान
करने मानव का परित्राण,
ला सकूँ विश्‍व में एक बार
फिर से नव जीवन का विहान।