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जग सपनौ सौ सब परत दिखाई तुम्हैं / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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जग सपनौ सौ सब परत दिखाई तुम्हैं
तातैं तुम ऊधौ हमैं सोवत लखात हौ ।
कहै रतनाकर सुनै को बात सोवत की
जोई मुँह आवत सो बिबस बयात हौ ॥
सोवत मैं जागत लखत अपने कौ जिमि
त्यौं हीं तुम आपहीं सुज्ञानी समुझात हौ ।
जोग-जोग कबहूँ न जानै कहा जोहि जकौ
ब्रह्म-ब्रह्म कबहूँ बहकि बररात हौ ॥50॥