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जज़्ब है जग की ज़माने की हवा में क्या-क्या / रवि सिन्हा

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जज़्ब है जग की ज़माने की हवा में क्या-क्या
साँस घोले है रग-ए-जाँ<ref>ख़ून की मुख्य नाड़ी (jugular vein)</ref> में बलाएँ<ref>विपत्तियाँ (calamities)</ref> क्या-क्या

दिल को क्या फ़िक्र वहाँ आप ही का मौसम है
जिस्म पर देखिये छाती हैं घटाएँ क्या-क्या

वादि-ए-ज़ीस्त<ref>जीवन की घाटी (valley of life)</ref> को कुहसार-ए-ख़िज़ाँ<ref>पतझड़ का पहाड़ (mount of autumn)</ref> से देखा
और गिनता रहा लाती थीं बहारें क्या-क्या

क्या कहें हाल-ए-ख़िरद<ref>बुद्धि (intellect)</ref> अक़्ल से मंतिक़<ref>तर्क, गणित (logic)</ref> छूटा
दिल मगर पेश किये जाय दलीलें क्या-क्या

राज़ तो ख़ैर फ़साहत<ref>सरल भाषा जो आसानी से समझ में आए (eloquence)</ref> ने छुपा रक्खे थे
बयाँ करती थीं वो ख़ामोश निगाहें क्या-क्या

आबो-गिल<ref>पानी और मिट्टी (water and soil)</ref> का ये मकाँ क़ैद किसे होना था
खड़े करती है मगर रूह फ़सीलें<ref>चारदीवारियाँ (boundaries)</ref> क्या-क्या

नातवाँ<ref>कमज़ोर (weak)</ref> से भी दरख़्तों की जड़ें गहरी हैं
चार सू<ref>चारों तरफ़ (all around)</ref> दश्त<ref>जंगल (forest)</ref> हैं धरती पे सँवारें क्या-क्या

धूल उड़ती है बयाबाँ में हैं शक्लें रक़्साँ<ref>नाचती हुई (dancing)</ref>
पर्दा-ए-ख़ाक से दिखता है ख़ला<ref>अन्तरिक्ष (interstellar space)</ref> में क्या-क्या

ख़ुद की तसवीर उतारी है मगर क्या भेजूँ
अक्स-ए-रू<ref>चेहरे का प्रतिबिम्ब (image of face)</ref> पे खिंची हैं ये लकीरें क्या-क्या

शब्दार्थ
<references/>