जजा जानेमन तिरी ज़ात से ममा मुझको ही पपा प्यार है / दिलावर 'फ़िगार'
हकले का प्यार
जजा जानेमन तिरी ज़ात से ममा मुझको ही पपा प्यार है
ग़ग़ा ग़ैर है ख़ख़ा ख़ुदग़रज़ ववा वक्त क़ा यया यार है
ररा रात भर जजा जागना, ददा दौड़ना, भभा भागना
बबा बाई गॉड यही मिरी हहा हालते-ज़ज़ा ज़ार है
ददा दिलरुबा है जो तू हसीं, ममा मैं भी कुछ कका कम नहीं
ममा मेरा भी शशा शहर के शशा शायरों में शुमार है
ख़ख़ा ख़र्च का ग़ग़ा ग़म नहीं, पपा पैसा भी कका कम नहीं
मेरी पास भी टटा टी वी है, बबा बंगला है, कका कार है
बबा ब्याह तुमसे करूंगा मैं, तता तेरे साथ मरूंगा मैं
कका कैंसर है मुझे अगर, ददा दिक़ की तू भी शिकार है
ख़ख़ा ख़त में तूने ये क्या लिखा, ”ववा वस्ल ग़ैर से हो गया”
ख़ख़ा ख़त तिरा, ख़ख़ा ख़त नहीं, मिरी मौत का तता तार है
ववा वो जो मेरा रक़ीब है, अआ आदमी भी अजीब है
शशा शायरी भी वो करता है, नना नाम उसका ‘फ़िगार’ है