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जटिल रस का परिपाक / रघुवंश मणि

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किसी जटिल चीज़ की तलाश है

हम स्वयं उलझाना चाहते हैं

कोई तो होगा रहस्य


समझने की कोई बात नहीं

न समझ में आवे तो भी

आनन्द तो उसी में है


जटिल रस का यह परिपाक

पुस्तकों में इसी की तलाश

वर्ना बचा एक रस : नीरस


हे ईश्वर हमें अमूर्तन दो

अपने ही जैसा जटिल-असुलझ

बोरिंग न हो जो परिवेश जैसा