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जनभाषा / अनिता भारती

चलो, आज कुछ
सार्थक कर दिखायें
शब्दों के अर्थ बदल डालें
या उनमें नयी जान डालें

जितने भी मुहावरे हैं
लोकोक्तियाँ हैं किस्से गाने हैं
क्यों न उनको
जनपक्ष में खडा कर दिया जाये?

अरे वो अपना भइया
दशरथ माँझी था ना
जिसने सचमुच
मुसीबत का पहाड़ हटा डाला
क्यों न उसकी हिम्मत के नाम
पहाड़ जैसा सीना की जगह
दशरथ माँझी जैसा सीना क्यों न कर दें?
चने को छोटा समझ
हम हमेशा कहते है
अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता
पर अकेले अम्बेडकर ने तो
अपने दम पर
पूरी सनातनी भाड़ में सेंध लगा
उसे उड़ा दिया था
तो क्यों न हम कहें
चना हो तो अम्बेडकर जैसा...