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जनरल पिनोशे बुक स्टोर में / भारत भूषण तिवारी / मार्टिन एस्पादा

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सान दिएगो स्ट्रीट के मोड़ पर खड़ी जनरल की लिमोजीन
और उसके अंगरक्षक उन्हें सुरक्षित ले गये उस बुक स्टोर में
जिसका नाम था ला ओपर्तुनिदाद, ताकि वह इतिहास की दुर्लभ
किताबें देख सके

पीछे नहीं छूटे कोई खूनी उँगलियों के निशाँ पन्नों पर
न ही कोई किताब भस्म हो गयी उसके स्पर्श से
उसके जूतों पर लगकर नहीं पहुँची वहाँ तक सामूहिक कब्रों की मिट्टी
न ही उसकी आँखें लाल हुई दानवी ज्वाला से
और भी बुराः उसके हाथ साफ रगड़े थे, आँखें लाल थीं उसकी
और मतिभ्रंश जो उसके दिमाग में ठाठें मार रहा था हैवान की तरह
जिससे नामुमकिन हुआ जा रहा था उस पर मुकदमा चलाना
वही मतिभंश अब नदारद था

ग़ायबशुदाः उन हजारों की तरह जो मर गये पर मरे नहीं
जब जनरल को याद दिलाया उस भीड़ ने
जो जमा हुई थी बुक स्टोर के बाहर ठट्ठा करने के लिए
अपने अंगरक्षकों के साथ जब लौट गया तेज़-तेज़
कितना क्षुद्र लगता वह साक्षात