भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जन्नत में लगी है आग / सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:10, 3 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त' |अनु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोग जन्नत है जिसे कहते
आज वह ज़मीन लाल हो गई
बेरहम दुनिया में जी के
इंसान की इंसानियत खो गई।

दूर-दूर क़दम बढ़ा कर
आए थे अमरनाथ दर्शन को
पत्थर की मूरत की जगह
आ गए असली भगवान को।

सरकार की नाक में नकेल डाल कर
ले जाना है उसे कर्तव्य पथ पर
वरना ना जाने कितने मरेंगे
सरकार की नपुंसकता पर।