जबां है क़ैद, तेरे लफ़्ज दुहराने से रोकती है
तेरी शोहरत तुझे अपना बताने से रोकती है
जुस्तजू में तेरी पलकें बिछाए बैठे हैं कई लोग
सर्द-ए-शब नम कालीनों पे कदम बढ़ाने से रोकती है
बेचैन है चाँद तेरे हलक़ में उतर जाने को मगर
चांदनी लब से कोई पैमाना लगाने से रोकती है
ये गुलबदन ने की भी कुछ यूँ लिपटी है तेरे सीने से
तुझे मेरे पास आने से, मुझे दूर जाने से रोकती है
वादा है मेरा खु़द से अबकी न देखूंगी तेरी ओर
पर पलकों पे बैठी मौत हर वादा निभाने से रोकती है