जब-जब घोर अमावस होगी, राह नहीं सूझेगी,
गीत उजाला बनकर जग के तम को दूर भगाएँगे।
उन गंभीर क्षणों में मन की,
बात कदाचित नहीं करेंगे।
सत्ताधीशों के चंगुल में,
फँस कर भी ये नहीं डरेंगे।
निकल कलम से पन्नों पर तब, धारदार बन जाएँगें।
जोड़ घटाना पास रखेंगे,
कितना खोया कितना पाया।
सच्चों को झूठों ने मिलकर,
धमकी दी, जितना भड़काया।
छलछन्दों के जग में तब, भीषण विध्वंस मचाएँगे।