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जब ओस में इक किरन नहाई लिक्खी / रमेश तन्हा

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जब ओस में इक किरन नहाई लिक्खी
फ़ितरत ने जब ली अंगड़ाई लिक्खी
जब वज्द में कायनात आई लिक्खी
हम ने भी रुबाई मिरे भाई लिक्खी।