क़ैदखाने के अँधेरे में
घर की याद दर्द छुपाए दिल को घेर लेती है
वह जमा होती है, जमा होती है सघन और बदराई
भीतर खिसक कर
नाउम्मीदी से दस्तक देती है
आवेश तन्हाई के कँटीले दिल से चुपचाप
ख़ून बन कर बहता है
इसीलिए मैं अपनी इच्छाएँ
बाड़ के पीछे बोना शुरू करता हूँ
जिससे मेरे क़ैदी दिल के उत्तेजित पंख
ऊँचाइयों को छूने के लिए
बड़े और मज़बूत बन जाते हैं ।
रचनाकाल : 22 फ़रवरी 1979
अंग्रेज़ी से अनुवाद : इन्दु कान्त आंगिरस