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जब के बेपर्दा तू हुआ होगा / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'

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जब के बेपर्दा तू हुआ होगा
माह पर्दें से तक रहा होगा

कुछ है सुर्ख़ी सी आज पलकों पर
क़तरा-ए-ख़ूँ कोई बहा होगा

मेरे नामे से ख़ूँ टपकता था
देख कर उस ने क्या कहा होगा

घूरता है मुझे वो दिल की मेरे
मेरी नजरों से पा गया होगा

यही रहता है अब तो ध्यान मुझे
वाँ से क़ासिद मेरा चला होगा

जिस घड़ी तुझ को कुंज-ए-ख़लवत में
पा के तन्हा वो आ गया होगा

‘मुसहफ़ी’ इस घड़ी में हैराँ हूँ
तुझ से क्यूँकर रहा गया होगा