जब तक मेरे नैन जगेंगे,
दिवस, साँझ औ' रैन जगेंगे।
भला कहाँ सो पाऊँगा मैं,
जब तक दिल से पीर बहेगी,
रक्त लालिमा मन-मस्तक से,
होकर बहुत अधीर बहेगी,
धमनी, नाड़ी इस शरीर के,
जब तक हो बेचैन जगेंगे।
दिवस, साँझ औ' रैन जगेंगे।
जब रस्ता चमकीला होगा,
अँधियारे की तन्हाई का,
तब शायद कोई द्वार खुले,
मुझसे रूठी परछाई का,
कुछ प्रश्नों का हल पाने को,
जब तक कॉपी, पैन जगेंगे।
दिवस, साँझ औ' रैन जगेंगे।
मुझको चिंता में पाकर जब,
काशी आँख नहीं झपकाती,
शिव के साथ यकायक मेरा,
हाल-ख़बर लेने आ जाती,
जब तक मुझमें शिव-गंगा के,
हरिद्वार, उज्जैन जगेंगे।
दिवस, साँझ औ' रैन जगेंगे।