Last modified on 11 जनवरी 2015, at 15:17

जब तुम अपनौ मौ खोलत हौ / महेश कटारे सुगम

जब तुम अपनौ मौ खोलत हौ
आपस में नफरत घोरत हौ

जहर उगलवे दूध प्या रये
सांपन खौं पालत पोसत हौ

पैलें आग लगात घरन में
फिर पानी लैवे दौरत<ref>दौड़ना</ref> हौ

झूठी मूठी बस बातन सें
बादर के तारे टोरत हौ

अपनी शकल सुधारत नईंयाँ
तुम तौ ऐना<ref>आईना</ref> खौं कोसत हौ

बादर देख पियत पानी के
सुगम पोतलन<ref>ठण्डे पानी का मिटटी का बना बर्तन</ref> खौं फोरत हौ

{{KKMeaning}