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जब तुम नहीं / मोहिनी सिंह

आज रात तुम नहीं
तो मेरे बिस्तर से उड़ कर गया चाँद
देखा मैंने आसमान को अलंकार बनते
तुम्हारी आवाज़ नहीं
तो घर के कोने में मैंने देखा
कोयल का एक पुराना घोंसला उगते
तुम हँसे नहीं दो दिन से
और फिसली पेड़ पर से गिलहरी
मैंने बजाई ताली, देखा उसे भगते
मैं छुई नहीं गई
तो मैंने छुआ हवा को
फिर छुआ , फिर देखा उसे सरकते
टोह ली है सबने मेरी तन्हाई
कि देखा मैंने सबको तमाशा करते
तुम्हें भुलाते,तुम्हें याद दिलाते
तुम नहीं तो
उँगली पकड़ के ख्यालों से ख्वाबों में ले जाते
देखा मैंने कविता को आते