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जब भी ज़िक्रे-ग़म होता है / दीपक शर्मा 'दीप'


जब भी ज़िक्रे-ग़म होता है
आँखों में हम-दम होता है

ज़्यादा बहना ठीक नहीं है
पानी, इस से कम होता है

रफ़्ता-रफ़्ता बुझता है दिल
हर दिन ये आलम होता है

तुम मजबूर मैं तनहा अच्छा
किस्सा आज ख़तम* होता है

हम तो ठहरे 'दीप' देहाती
शहरों का मौसम होता है