भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब भी पुकारा आप को सुनते नहीं हैं आप /पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"

Kavita Kosh से
Purshottam abbi "azer" (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:55, 19 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र" }} {{KKCatGhazal}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब भी पुकारा आप को सुनते नहीं हैं आप
खुद दे के हमको वक्त भी आये नहीं हैं आप

इतना गरूर किस लिए किस बात का घमण्ड
है चार दिन की ज़िन्दगी समझे नहीं हैं आप

हर पल निगाहें आपको ही ढूंढती हैं जान
फ़ुर्सत के पल निकाल के मिलते नहीं हैं आप

देखो बहार लाई है खुशियाँ तमाम-सी
इनको भी साथ लूटने चलते नहीं हैं आप

खामोश ही रहोगे या दोगे हमें जवाब
तारीफ़ भी ग़ज़ल कि अब करते नहीं है आप

बंधन हैं इस समाज के हम जानते हैं खूब
आँसू भी अपनी आँख में लाते नहीं हैं आप

’आज़र’खफ़ा हैं आप से घर के तमाम लोग
घर दो पलों के वास्ते आते नहीं हैं आप