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"जब मिलेगी रोशनी मुझसे मिलेगी / रामावतार त्यागी" के अवतरणों में अंतर

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इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूँ;  
 
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मत बुझाओ !
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जब मिलेगी, रोशनी मुझसे मिलेगी !!
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जब मिलेगी, रोशनी मुझसे मिलेगी!
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पाँव तो मेरे थकन ने छील डाले  
 
पाँव तो मेरे थकन ने छील डाले  
 
अब विचारों के सहारे चल रहा हूँ  
 
अब विचारों के सहारे चल रहा हूँ  
 
आँसूओं से जन्म दे-देकर हँसी को  
 
आँसूओं से जन्म दे-देकर हँसी को  
एक मंदिर के दिये-सा जल रहा हूँ;
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एक मंदिर के दिए-सा जल रहा हूँ;
 
मैं जहाँ धर दूँ कदम वह राजपथ है;
 
मैं जहाँ धर दूँ कदम वह राजपथ है;
मत मिटाओ  
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मत मिटाओ!
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पाँव मेरे, देखकर दुनिया चलेगी!
  
पाँव मेरे देखकर दुनिया चलेगी!!
 
 
बेबसी मेरे अधर इतने न खोलो  
 
बेबसी मेरे अधर इतने न खोलो  
जो कि अपना मोल बतलाता फिरूँ मैं  
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जो कि अपना मोल बतलाता फिरूँ मैं
इस कदर नफ़रत न बरसाओ नयन से  
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इस कदर नफ़रत न बरसाओ नयन से
प्यार को हर गाँव दफनाता फिरूँ मैं  
+
प्यार को हर गाँव दफनाता फिरूँ मैं
एक अंगारा गरम मैं ही बचा हूँ।
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एक अंगारा गरम मैं ही बचा हूँ
मत बुझाओ।
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मत बुझाओ!
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जब जलेगी, आरती मुझसे जलेगी!
  
जब जलेगी, आरती मुझसे जलेगी!!
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जी रहे हो किस कला का नाम लेकर  
जी रहो हो किस कला का नाम लेकर  
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कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है,  
 
कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है,  
 
सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो  
 
सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो  
 
वह हमीं बदनाम लोगों ने रची है;  
 
वह हमीं बदनाम लोगों ने रची है;  
मैं बहारों का अकेला वंशधर हूँ,
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मैं बहारों का अकेला वंशधर हूँ
 
मत सुखाओ!  
 
मत सुखाओ!  
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मैं खिलूँगा, तब नई बगिया खिलेगी!
  
मैं खिलूँगा तब नई बगिया खिलेगी!!
 
 
शाम ने सबके मुखों पर आग मल दी  
 
शाम ने सबके मुखों पर आग मल दी  
मैं जला हूँ, तो सुबह लाकर बुझूंगा
+
मैं जला हूँ, तो सुबह लाकर बुझुँगा
ज़िंदगी सारी गुनाहों में बिताकर  
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ज़िन्दगी सारी गुनाहों में बिताकर  
जब मरूँगा देवता बनकर पूजूँगा;  
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जब मरूँगा देवता बनकर पुजुँगा;  
आँसूओं को देखकर मेरी हँसी तुम  
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आँसूओं को देखकर मेरी हंसी तुम  
 
मत उड़ाओ!
 
मत उड़ाओ!
 
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मैं न रोऊँ, तो शिला कैसे गलेगी!
मैं न रोऊँ, तो शिला कैसे गलेगी!!
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14:24, 19 जनवरी 2021 के समय का अवतरण

इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूँ;
मत बुझाओ!
जब मिलेगी, रोशनी मुझसे मिलेगी!

पाँव तो मेरे थकन ने छील डाले
अब विचारों के सहारे चल रहा हूँ
आँसूओं से जन्म दे-देकर हँसी को
एक मंदिर के दिए-सा जल रहा हूँ;
मैं जहाँ धर दूँ कदम वह राजपथ है;
मत मिटाओ!
पाँव मेरे, देखकर दुनिया चलेगी!

बेबसी मेरे अधर इतने न खोलो
जो कि अपना मोल बतलाता फिरूँ मैं
इस कदर नफ़रत न बरसाओ नयन से
प्यार को हर गाँव दफनाता फिरूँ मैं
एक अंगारा गरम मैं ही बचा हूँ
मत बुझाओ!
जब जलेगी, आरती मुझसे जलेगी!

जी रहे हो किस कला का नाम लेकर
कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है,
सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो
वह हमीं बदनाम लोगों ने रची है;
मैं बहारों का अकेला वंशधर हूँ
मत सुखाओ!
मैं खिलूँगा, तब नई बगिया खिलेगी!

शाम ने सबके मुखों पर आग मल दी
मैं जला हूँ, तो सुबह लाकर बुझुँगा
ज़िन्दगी सारी गुनाहों में बिताकर
जब मरूँगा देवता बनकर पुजुँगा;
आँसूओं को देखकर मेरी हंसी तुम
मत उड़ाओ!
मैं न रोऊँ, तो शिला कैसे गलेगी!