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जब यादों के अक्स उभरने लगते हैं / अमन चाँदपुरी
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जब यादों के अक्स उभरने लगते हैं
हम किस्तों में जीने मरने लगते हैं
मीरा की नज़रों से गर देखा जाये
प्याले में भी अक्स उभरने लगते हैं
हमको जब भी याद तुम्हारी आती है
आईने से बातें करने लगते हैं
जादू करती है जब दुआ बुज़ुर्गों की
हर मुश्किल से आप उबरने लगते हैं
दर्द-ओ-ग़म की भट्टी में तप-तप कर हम
कुंदन बनकर रोज़ निखरने लगते हैं
दिन भर आती रहती है बस उसकी याद
रात आँखों में ख़्वाब ठहरने लगते हैं
पहले चढ़ता है इक चेहरा आँखों में
फिर काग़ज़ पर शेर उतरने लगते हैं
धीरे-धीरे मंजिल आती है नज़दीक
'अमन' क़दम जब आगे धरने लगते हैं