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जब से कान्हा की बंशी बजी / नवीन कुमार सिंह

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जब से कान्हा की बंसी बजी
राधा भई बावरी
ऐसी अद्भुत छबीली छवि
राधा भई बावरी

छोड़ा अपना सदन
वो तो पैदल मगन
भूल तन वृंदावन में चली
होठ पर सुर तिरे
आँख अश्रु भरे
मिलने अपने सजन से चली
अब सुध बुध की किसको पड़ी

राधा भई बावरी
जब से कान्हा की बंसी बजी
राधा भई बावरी

धरती आकाश से
मिल रही थी गले
पेड़ पौधे हरे हो गए है
ऐसा अद्भुत मिलन
देख हर्षाया मन
देवता सब खड़े हो गए

मोर पंखों के संग सांवरी
राधा भई बावरी
जब से कान्हा की बंसी बजी
राधा भई बावरी

कान्हा मुझमे भी है
राधा तुझमे भी है
है हकीकत ये सबसे बड़ी

पर हो कैसे मिलन
पहले पावन हो मन
तब ही आएगी ऐसी घड़ी

प्रीत की शक्ति सबसे बड़ी
राधा भई बावरी
जब से कान्हा की बंसी बजी
राधा भई बावरी