भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब से घनश्याम इस दिल में आने लगे / बिन्दु जी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब से घनश्याम इस दिल में आने लगे।
क्या कहें रंग क्या-क्या दिखाने लगे।
आये यूहीं जो एक दिन टहलते हुए।
कुछ झिझकते हुए कुछ सम्हलते हुए।
चुपके-चुपके से दिल लेके चलते हुए।
मैंने पकड़ा जो बहर निकलते हुए।
मोहनी डालकर मुस्कराने लगे। क्या कहें
एक दिन उनके आने का बतलाऊँ ढव।
आ गये नैन से ही लगाकर नकव।
बांधकर ले चले जानो दिल माल सब।
मैंने देखा तो पुछा कि यह क्या गजब।
कुछ मचलकर वो मुरली बजाने लगे।
क्या कहें रंग क्या-क्या दिखाने लगे।

एक दिन ख़्वाब में हीं खड़े आप हैं।
दिल उड़ाने की धुन में अड़े आप हैं।
मैं ये बोला कि हजरत बड़े आप हैं।
क्यूँ मेरे दिल के पीछे पड़े आप हैं।
चोट चितवन की चित पर चलाने लगे।
क्या कहें रंग क्या-क्या दिखाने लगे।

एक दिन आप आये तो इस तौर से।
दर्दे दिल बनके दिल में उठे जोर से।
मैंने देखा उन्हें जब बड़े गौर से।
भागने फिर न पाए किसी ओर से।
बन गये ‘बिन्दु’ आँखों से जाने लगे।
क्या कहें रंग क्या-क्या दिखाने लगे।