बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
जब से मन मोहन बिछुरे हैं,
भारी कसट परे हैं।
दिन ना चैन रात ना निंदिया,
खान-पान बिसरे हैं।
भूसन बसन सवह हम त्यागे-,
जे तन जात जरे हैं।
ईसुर स्याम सौत कुवजा पै,
जोगिन भेष धरे हैं॥
जब से मन मोहन बिछुरे हैं,
भारी कसट परे हैं।
दिन ना चैन रात ना निंदिया,
खान-पान बिसरे हैं।
भूसन बसन सवह हम त्यागे-,
जे तन जात जरे हैं।
ईसुर स्याम सौत कुवजा पै,
जोगिन भेष धरे हैं॥