जब से मुझको तू ने छुआ है
रातें पूनम दिन गिरुआ है
इक बीज पड़ा है इश्क का तो
नस-नस में पनपा महुआ है
तू जो गया तो अहसासों का
मन अब इक खाली बटुआ है
टूटा है तो दर्द भी होगा
दिल तो शीशम ना सखुआ है
तेरे चेहरे की रंगत से
मेरा हर मौसम फगुआ है
फेरो ना यूं नजरें मुझसे
बहने लगेगी फिर पछुआ है
हँस के तू ने देख लिया तो
जग ये सारा हँसता हुआ है
{मासिक वर्तमान साहित्य, अगस्त 2009}