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जब हम मिले थे पियराते मौसम में / गीताश्री

जब हम मिले थे पियराते मौसम में
तब हवा का रुख हमारी ओर था,
ये आँखों का भ्रम था या हवा का रिवाज,
कि जब-जब मौसम पियराता है,
वह साथ खड़ी दिखाई देती है,
ठीक वैसे जैसे पकी फ़सल के पास,
खड़ी होती है किसानिन...
फ़सल को पता नहीं होता कि,
उखड़ने वाली है उसकी ज़मीन,
छिन जाने वाला है आकाश,
चन्दन, रोली के धुँधलाते चिह्नों में,
ऊपर से सुनहरी दिखती बालियों में
बस जाती हैं टिसती यादें, पियराई-सी..।