Last modified on 27 नवम्बर 2015, at 03:34

जमुना किनारे मेरौ गाँव / ब्रजभाषा

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जमुना किनारे मेरौ गाँव आ जइयो॥ टेक॥
जमुना किनारे मेरी ऊँची हवेली,
मैं ब्रज की गोपिका नवेली।
राधा रंगीली मेरौ नाम कि बंशी बजाय जइयो॥ 1॥

मल-मल कै स्नान कराऊँ,
घिस-घिस चन्दन खौर लगाऊँ।
पूजा करूँ सुबह शाम कि माखन माख जइयो॥ 2॥

खस-खस कौ बंगला बनवाऊँ,
चुन-चुन कलियाँ सेज सजाऊँ।
धीरे-धीरे दाबूँ में पाम, प्रेम-रस पियाय जइयो॥ 3॥

देखत रहूँगी बाट तुम्हारी
जल्दी अइयो कृष्णमुरारी।
झाँकी करेंगी ब्रजवाम कि हंस-मुस्काय जइयो॥ 4॥

तुम से फँस रहौ प्रेम हमारौ,
खिच्चो कह रहौ आटे बारौ।
बाबू खलीफा मेरौ काम नैंक करवाय जइयो॥ 5॥