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जय होगी / बुद्धिनाथ मिश्र

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जय होगी, निश्चय जय होगी
भारत की धरती पर इसकी
जनभाषा की ही जय होगी।
जय होगी, निश्चय जय होगी ।

आज नहीं तो कल सूखेगी
अमरबेल दासता-काल की
ढो न सकेंगे लवकुश अब
रानी की वह घुन लगी पालकी ।

जय होगी, निश्चय जय होगी
वेदों की इस यज्ञ-भूमि पर
सुरवाणी की ही जय होगी।
जय होगी, निश्चय जय होगी ।

आज नहीं तो कल टूटेगी
तन्द्रा यह मनु के पुत्रों की
जन-चेतना अनल में नस्लें
जल जाएँगी विषवृक्षों की ।

जय होगी, निश्चय जय होगी
रामकृष्ण की आर्यभूमि पर
गंगा-कृष्णा की जय होगी ।
जय होगी, निश्चय जय होगी ।

आज नहीं तो कल बैठेगी
सिंहासन पर जन की भाषा
पूरी होगी आज नहीं तो
कल स्वतंत्रता की परिभाषा ।

जय होगी, निश्चय जय होगी
सन्तों, आचार्यों के घर में
कुलदेवी की ही जय होगी ।
जय होगी, निश्चय जय होगी ।