भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जरमन नैं गोला मारिया / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जरमन नैं गोला मारिया,

ज फूट्या, था अम्बर मैं ।

गारद सें सिपाही भाजै

रोटी छोड़ गए लंगर मैं ।

अरे उन तिरिऊन का जीवै,

जिनके बालम छे नम्बर में ।


भावार्थ

--'जर्मन ने गोला मारा । आकाश में जाकर वह गोला फट गया । लंगर में रोटी खा रहे सिपाही अपनी-अपनी

रोटी छोड़कर भाग गए । अब क्या पता उन औरतों में से किस-किस के पति जीवित बचे होंगे, जिनके पति छह

नम्बर की पलटन में सिपाही हैं ?'