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"जरूरी नहीं.../अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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लगाते पर्दे
 
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'''डर'''
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घर-घर में  
 
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फैला रहे हैं डर  
 
फैला रहे हैं डर  

14:24, 20 मार्च 2015 का अवतरण

जरूरी नहीं

जरूरी नहीं
जो पढ़ा है तुमने
पढ़ा सकोगे

जिनके घर

जिनके घर
बने हुए शीशे के
लगाते पर्दे

डर
 
घर-घर में
फैला रहे हैं डर
टीवी-चैनल

एक कहानी

तेरी-मेरी है
बस एक कहानी
राजा न रानी

भोग

प्रभु के लिए
छप्पन भोग बने
खाये पुजारी

समय नहीं

बड़े दिनों से
मन है मिलने का
समय नहीं

उल्लू के पठ्ठे

उल्लू के पठ्ठे
उल्लू नहीं होंगे तो
भला क्या होंगे

सफर

कहने को तो
सफर है सुहाना
थकते जाना

कितने कवि

कितने कवि
कविता लिखने से
हुए पागल

पड़ी लकड़ी

पड़ी लकड़ी
जब भी है उठायी
आफ़त आयी

आदेश

आदेश हुआ
महिला हो मुखिया
कागज़ पर