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जलम : दो / विरेन्द्र कुमार ढुंढाडा़

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ठाह थोड़ी हो
क्यूं जलम्यां हां
आपां सगळा
करणों कांई है
इण धरा माथै।

सारा कारण
धारया है खुद
ओटी है
हांती-पांती
जिम्मेदार्यां
चलाया है पग
घूम-घूम
देख्यो है जग।

आपरै हाथां कमाया है
दुख-दरद-धन
आज छूटै है जद
मांदी पड़ती सांसां
ढूंढां जलमदाता
कोई परमेसर
जको टोर दै कदास
दो चार पांवडा
जूण रा और।