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जलरंगों से बनी तस्वीर / बरीस सदअवस्कोय / अनिल जनविजय

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तेरी नज़रों में छाई है शाम की थकान
तेरी आवाज़ जैसे एक कोमल बाँसुरी है
तू जैसे पारिवारिक एल्बम से निकली है
पानी-सी पारदर्शी तस्वीर कोई माधुरी है

रचता हूँ किसी खुरदुरे-सुरमई कागज़ पर
तेरे चेहरे की चमकती बारीक़ रेखाएँ
फलों की दमक और चिड़ियों की रंगज हर
पानी की सतह पर झुके फूलों की आभाएँ

मैं क्यों नहीं रह सकता हलके जलरंगों पर
चाहता हूँ जीना मैं तेरे साथ हमेशा
कभी हरिण-मृग, कभी सारंग-कुरंग बन
कभी धर नीलवर्ण जलपक्षी का वेषा ।

1935
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
         Борис Садовской
               Акварель

Твой взор – вечерняя истома.
Твой голос – нежная свирель.
Ты из семейного альбома
В прозрачных красках акварель.

На серо-матовой странице
Рисую тонкие черты:
Блестят плоды, сверкают птицы,
К озёрам клонятся цветы.

Зачем на светлой акварели
Нельзя мне вечно быть с тобой,
Хотя бы в виде той газели
Иль этой чайки голубой?

1935