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जलौघमग्ना सचराचराधरा / नीलाभ

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धूमनगंज और घूरपुर थानों से
सँड़सी की तरह जकड़ा हुआ यह शहर
जहाँ गंगा अब बन गई है ज़हर की नदी
अशोक सिंघल का सारा धरम-करम और
मुरारी बापू का सारा पुण्य-बल भी
उसे साफ़ करने के लिए नाकाफ़ी है
और जमुना की छातियाँ काट ली हैं
बालू के ठेकेदारों ने
अब उनसे दूध नहीं लहू बहता है
सरस्वती गैंग-रेप का शिकार है
इसकी एफ़० आई० आर० किस थाने में दर्ज होगी
कोई नहीं जानता
दुनिया की सारी नेमतों पर
जो कुदरत ने दीं या इन्सान ने बनाईं
रोटी, कपड़ा, मकान, दवा-दारु, शिक्षा, रोज़गार
सब पर माफ़िया का क़ब्ज़ा है या कॉरपोरेट घरानों का,
अन्धा हो चुका है क़ानून,
हरकारे बाँट रहे हैं भाँग की पकौड़ी या
घोटालेबाज़ों के सच्चरित्रता प्रमाण-पत्र टी० वी० पर,
डूब चुकी है पृथ्वी आपाद-मस्तक जल में
और वराह चला गया है लम्बी एल० टी० सी० पर