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जवाँ होती हसीं लड़कियाँ-2 / शाहिद अख़्तर

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जवाँ होती हसीं लड़कियाँ
सिर्फ़ हसीन होती हैं ।
सिर्फ़ हुस्‍न होती हैं ।
सिर्फ़ ज़िस्‍म होती हैं ।

कौन झाँकता हैं उनकी आँखों में
कि वहाँ सैलाब क्‍यों है ?
कौन टटोलता है उनके दिल को
कि वहाँ क्‍या बरपा है ?

जवाँ होती हसीं लड़कियाँ
हसीं ति‍‍तलियों के मानिंद हैं ।
हर कोई हविस के हाथों में
उन्‍हें क़ैद करने को दरपा है ।

जवाँ होती हसीं लड़कियाँ
कब तलक रहें महुए इंतज़ार ?
कब तलक बचाएँ ज़िस्‍मो-जान?
कब तलक सुनाएँ दास्‍तान-ए-दिल फिगार ??