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जश्न में हरगिज़ न जाऊँगा मुझे करना मुआफ़ / विनय कुमार
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जश्न में हरगिज़ न जाऊँगा मुझे करना मुआफ़।
कर रहा हूँ मैं समय के आइने की ग़र्द साफ़।
एक ही है बात प्यारे, फ़र्क है अंदाज़ का
मैं तुम्हारे साथ हूँ या हूँ सितारों के ख़िलाफ़।
इस सफ़र में आग के तकिए मिलेंगे बारहा
काम आएँगे तुम्हारी याद के ठंढे गिलाफ़।
देखिए अब कब चिरागां हो हमारे सोच में
रोशनी दुबकी हुई है ओढ़ कर काला लिहाफ़।
आपकी सारी ख़िलाफ़त खाद पानी की तरह
बढ़ते-बढ़ते क़द सितमग़र का हुआ जाता जिराफ।
खून में डूबी कलम की राह मत रोका करो
बात होने दो मुकम्मल, टूटने दो शीन काफ़।