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जसी / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

झपन्याली डाली का छैल देखे वींन,
पदमू रौत छौ बैठ्यूँ जख मांज।
नजीक जांदी जसी, सेवा लगौन्दो
मुल-मुल<ref>मन्द-मन्द</ref> हैसदो पदमू रौत।
मुख मोड़ी जसीन, शरमैंन आंखी,
गोरी गल्वाड़ी<ref>गाल</ref> वीं की भरेन ज्वानी का ल्वेन।
देखदो रै गए पदमू वीं रूप की जोत,
जसीन हात पकड़ीक वो भ्वां बैठाये।
पदमू सणी जनू सेयां मा होश आये,
काख<ref>बगल</ref> गाडे<ref>ली</ref> वेन वा, धौंपेली<ref>चुटिया</ref> मलासे,
वखी मू फुल्याँ वण का फूलून
वा डांडू<ref>पहाड़ी</ref> की आछरी<ref>अप्सरा</ref> जनी सजाये।
दीदी की छुई<ref>बातें</ref> लगीन दीदी का नौनों की,
मैत<ref>मायका</ref> खबर सार सुणाई, सैसर<ref>ससुराल</ref> की भी।
तब भेना<ref>जीजा</ref> का खुटो<ref>पैर</ref> मा सेवा लैक,
घर को पयाणो, तैन कैले।
चौक का छोड़ जब जसी आये,
चट नजर रौल<ref>सास</ref> की लैंगे,
ब्वारी<ref>बहू</ref> की देखे वींन फूलू भरी स्यूंद<ref>माँग</ref> पाटी,
सासू की जिकुड़ी<ref>हृदय</ref> जनी किरमोलीन काटी।
सुबेरी बिटी<ref>से</ref> तू पद्यारा<ref>पनघट</ref> रै बेगणी,
दुनिया दुखैण्णी तू ब्वारी क्यूं च।
एतरीं<ref>इतनी</ref> बगत<ref>वक्त, देर</ref> तू क्या करदी रई,
बुवा<ref>बाप</ref> छौं आयों तेरो वख या बई<ref>माँ</ref>,
भाई छौ आयों या मामा तेरो?

ना बोला सासु जी तु यनी बात,
दिन की न बणावा यनी रात।
विराणा बैख<ref>व्यक्ति, पुरुष</ref> वै-बाबु का सामान।
पदमू रौत होन्द मेरो भेना<ref>जीजा</ref>,
पंद्यारा मिले वो बीच बाट
दिदी की खूश खबर पूछे मैंन।
ना लावा ठणा<ref>लांछन</ref> मैं विष खोलों,
गंगा फाल<ref>कूद</ref> द्यूलो, अबि मरी जौलों।
सासू बुडड़ी छै बुवारी की बैरी,
वींन ब्वारी को मुख गबदाये-
लबार<ref>गप्पी</ref>, पातर<ref>वेश्या</ref> छै तू दारी<ref>कुलटा</ref>,
बार<ref>इधर-उधर</ref> पार लैक मेरा नौना बमौन्दी<ref>भरमाना</ref>।
ढाटी<ref>ढीठ</ref> जिकुड़ो तेरी बाघ खालो,
दाग<ref>पाप</ref> लगेक ज्वानी पर यख आई केक?
देख त्वै आज मैं ज्यूंदा<ref>जिंदा</ref> न छोड़ों।
बुडड़ीन तब कटार मारे, खून की धार बगे।
धार की गेंडकी<ref>गोला, लकड़ी का टुकड़ा</ref> सी रूड़े<ref>फिसली</ref> जसी,
निमो<ref>नींबू</ref> का बग्वान<ref>बाग</ref> दिने धोली।
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भण्डारी तब सुपिनो ह्वै गए बुरो,
बाटा लग्यूं छौ वो घर पौंछीगे।
इथैं देखद उथैं जसी भैर<ref>बाहर</ref> नी आई।
तब भट्यांद<ref>चिल्लाया</ref> भण्डज्ञरी वीरूवा-
भैर औदू, भैर जसी मेरी राणी।
बाटा को थक्यूं छौं, घाम को सुक्यू,

गंगा जी को सेलो<ref>ठंडा</ref> पाणी दी जा।
भैर आये तब जिया<ref>माँ</ref> वेकी पùावती,
मुख झोसो<ref>कुम्हला</ref> छौ पड़यूं वींका मोसो<ref>काला</ref>
पूछद तब भण्डारी, वैं जसी का च?
आँख्यों मा जिया का रात पड़ी गए।
न ले मेरा वीं पातर को नऊँ<ref>नाम</ref>,
पदमू रौत आई छौ वीं को भेना<ref>जीजा</ref>,
पाणी पंद्यारा वा पाप करीक आए।
अपणा पापन बेटा, वींन मौत अपणी अफी बुलाए।
हकदक<ref>हक्का-बक्का</ref> रै गए भण्डारी भारी-
हा, त्वैन मेरी जोड़ी को मलेऊ<ref>हंस</ref> फँट्याए<ref>अलग करना</ref>?
कख जैक पौणा मैन जसी जसी नार?
तब रोन्दू बबरान्दू भण्डारी जांदू निमौं का बग्वान।
वींकी पिंगूली मुखुड़ी देखद, कौडी सरीं दाँतुड़ी।
हा, जसी तू मैं छोड़ी कै का घर गई?
कै देवन हरे तेरी या अल्हर ज्वानी।
फफड़ँद<ref>तड़पता</ref> छ वीरूवा लफरांद<ref>कलपता</ref> छ,
कना कना कारणा कर्द।
अंग्बाल<ref>आलिंगन</ref> मारीक वीं बेहोश ह्वै जाँद।
तब वैका सुपिना मा औन्दन मादेव पारबती।
धीरज धरौन्दन, जतन करौन्दन।
तब वीरूवा गंगाजल को लगोंद छीटो,
सते<ref>सच्ची</ref> होली तू दुयो<ref>दोनों</ref> की जाई<ref>पैदा की</ref>, एक की जोई<ref>पत्नी</ref>,
त उठी जा सैयाँ की चार।
जु त्वैन नी करे हो पाप, मन रै हो साफ<ref>साफ</ref>,
जु कैक खोटी नी बोली, पराई नी ताकी होली,
त तू खड़ी होई जा जसी मेरी नार,
बिंजी<ref>जाग जा</ref> जा बिंजी, हे सेयाँ की चार।
प्रभु की माया देखा-सतियों को सत-
जसी कबलाण<ref>हिलने-डुलने</ref> लैगे, आँख्योंन टपराण<ref>टपटप आँसू गिरने</ref> लैगे,
बीरु न वा साँका<ref>गोद</ref> लैले, हरचीं<ref>खोयी</ref> जनी पैले<ref>मिल गयी</ref>।

शब्दार्थ
<references/>