Last modified on 9 जनवरी 2011, at 13:39

जहाँ गिरा वह सूर्य / केदारनाथ अग्रवाल

जहाँ निराला मरे
वहाँ अब मरे न कोई
जहाँ गिरा वह सूर्य
वहाँ अब गिरे न कोई

नव वसंत में
इस युग के इस अमर-प्राण का
युग वंदन हो
सुभग सुमन से अभिनंदन हो।

वह था साधक
बहुत लोग थे उसके बाधक
फिर भी जिसने ऐंड़ लगाई
मिट्टी खाई

नव वसंत में
इस युग के इस प्रवर प्राण का
आराधन हो
वर्ण-वर्ण से अभिवादन हो।

रचनाकाल: १२-०२-१९६२