भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जहाँ जाओ जुनून मिलता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:42, 5 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र |संग्रह=ग़ज़ल ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जहाँ जाओ जुनून मिलता है।
घर पहुँचकर सुकून मिलता है।

अब तो करती है रुत भी घोटाले,
मार्च के बाद जून मिलता है।

आज सबकी नसों में है पानी,
सिर्फ़ आँखों में खून मिलता है।

रोज सूरज से लड़ रहा हूँ तब,
रात कुछ पल को मून मिलता है।

कहीं भत्ता भी मिल रहा दूना,
कहीं वेतन भी न्यून मिलता है।