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जहाँ न बस्ता कंधा तोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा / गिरीश चंद्र तिबाडी 'गिर्दा'
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09:39, 2 सितम्बर 2010
जहाँ न अक्षर कान उखाड़ें, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ न भाषा जख़्म उभारे, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ अंक सच-सच बतलाएँ, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ प्रश्न हल तक पहुँचाएँ, ऐसा हो स्कूल हमारा
अनिल जनविजय
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