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जहिया तोहार आँखि के पानी उतर गइल / मिथिलेश गहमरी

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 जहिया तोहार आँखि के पानी उतर गइल
बुझिहs, कि जिन्दगी के रोहानी उतर गइल

 मुस्कान, आस, लोर, लचारी, बिरह-ब्यथा
कागज प जिन्दगी के कहानी उतर गइल

कइसे कसाई पूत हो जाला, ई सोंच के
माई के बूढ़ आँखि में पानी उतर गइल

बेटा के माथे, धूर-अखाड़ा के देखि के
नस-नस में बाबूजी के, जवानी उतर गइल

छन भर गजल के छाँह में बइठल रहीं, हुजूर
सउँसे उमिर के दाह-थकानी उतर गइल

 मनबढ़ बहुत रहे, तबो मउवत के सामने
मिथिलेश, जिन्दगी के फुटानी उतर गइल