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ज़ख़्म करके हरा / कैलाश झा 'किंकर'

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ज़ख़्म करके हरा
हँस रहा मसखरा।

जब से आई है वो
तब से हूँ मैं डरा।

बेवजह सबसे वह
लड़ते-लड़ते मरा।

प्यार में हो गया
दिल मेरा बावरा।

तौल में गड़बड़ी
क्या करे बटखरा।

दाम कम क्यों करूँ
मेरा सोना खरा।

काम आया मुझे
आपका मशवरा।

आप तो लग रही
स्वर्ग की अप्सरा।