Last modified on 28 जुलाई 2009, at 11:59

ज़बाँबन्दी से खुश हो, खुश रहो, लेकिन यह सुन रक्खो / सीमाब अकबराबादी

चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:59, 28 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सीमाब अकबराबादी |संग्रह= }} <poem> ज़बाँबन्दी से ख़ु...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 

ज़बाँबन्दी से ख़ुश हो, ख़ुश रहो, लेकिन यह सुन रक्खो।
ख़मोशी भी मेरी अफ़साना बन जायेगी महफ़िल में॥

दिल और तूफ़ानेग़म, घबरा के मैं तो मर चुका होता।
मगर इक यह सहारा है कि तुम मौजूद हो दिल में॥

न जाने मौज क्या आई कि जब दरिया से मैं निकला।
तो दरिया भी सिमट कर आ गया आग़ोशे-साहिल में॥